॥ श्री कालभैरवाष्टकम् ॥
रचयिता
- इस अद्भुत स्तोत्र के रचयिता जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी हैं।
- माना जाता है कि जब वे काशी (वाराणसी) में थे, तब उन्होंने भगवान कालभैरव की महिमा में इस अष्टकम् की रचना की।
रचना का उद्देश्य
- काशी के कोतवाल भगवान कालभैरव के शक्तिशाली, उग्र और साथ ही कृपालु स्वरूप का गुणगान करना।
- भक्तों को एक ऐसा स्तोत्र प्रदान करना, जिसके पाठ से वे भय, पाप और कर्म-बंधन से मुक्ति पा सकें।
- कालभैरव की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को सुगम बनाना, क्योंकि काशी में वे ही मोक्ष के प्रदाता माने जाते हैं।
कालभैरवाष्टकम् की विशेषताएँ
- गेयता और लय: इसकी संस्कृत भाषा अत्यंत लयबद्ध और संगीतमय है, जिससे इसे गाना और याद करना सरल हो जाता है।
- शक्तिशाली बिम्ब: स्तोत्र में "करोड़ों सूर्य का तेज", "काल के भी काल" जैसे शब्द भगवान भैरव का एक सजीव चित्र प्रस्तुत करते हैं।
- द्वैत स्वरूप का वर्णन: यह स्तोत्र भैरव के भयंकर (अधर्म नाशक) और शांत (भक्तवत्सल) दोनों स्वरूपों का संतुलन दिखाता है।
पढ़ने के नियम
- समय: इसका पाठ करने का सर्वोत्तम समय संध्याकाल या रात्रि है।
- शुद्धता: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर इसका पाठ करना चाहिए।
- वातावरण: भगवान शिव या भैरव की मूर्ति/चित्र के समक्ष, सरसों के तेल का दीपक जलाकर पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
- भाव: पूर्ण श्रद्धा और एकाग्रता के साथ, अर्थ को समझते हुए पाठ करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है।
- विशेष दिन: रविवार, मंगलवार, शनिवार और विशेष रूप से कालाष्टमी पर इसका पाठ अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥१॥
अर्थ: जिनके पवित्र चरण-कमलों की सेवा देवराज इंद्र करते हैं, जिन्होंने सर्प को यज्ञोपवीत की तरह धारण किया है, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है और जो कृपा करने वाले हैं, नारद आदि योगियों के समूह जिनकी वंदना करते हैं, जो दिगंबर हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥१॥
Devarāja-sevyamāna-pāvanāṅghri-paṅkajaṃ
Vyālayajña-sūtramindu-śekharaṃ kṛpākaram |
Nāradādi-yogi-vṛnda-vanditaṃ digambaraṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||1||
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥२॥
अर्थ: जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, जो संसार रूपी सागर से तारने वाले हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं, जिनका कंठ नीला है, जो इच्छित वस्तुओं को प्रदान करने वाले हैं और जिनके तीन नेत्र हैं, जो काल के भी काल हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं और जो अविनाशी हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥२॥
Bhānukoṭi-bhāsvaraṃ bhavābdhi-tārakaṃ paraṃ
Nīlakaṇṭham-īpsitārtha-dāyakaṃ trilocanam |
Kālakālam-ambujākṣam-akṣaśūlam-akṣaraṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||2||
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥३॥
अर्थ: जिन्होंने अपने हाथों में त्रिशूल, टंक (कुल्हाड़ी), पाश और दण्ड धारण किया है, जो सृष्टि के आदि कारण हैं, जिनका शरीर श्याम वर्ण का है, जो आदिदेव, अविनाशी और रोग-रहित हैं, जो भयंकर पराक्रम वाले प्रभु हैं और जिन्हें अद्भुत तांडव प्रिय है, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥३॥
Śūla-ṭaṅka-pāśa-daṇḍa-pāṇim-ādi-kāraṇaṃ
Śyāmakāyam-ādidevam-akṣaraṃ nirāmayam |
Bhīmavikramaṃ prabhuṃ vicitra-tāṇḍava-priyaṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||3||
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥४॥
अर्थ: जो भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाले हैं, जिनका स्वरूप अत्यंत सुन्दर और प्रशंसनीय है, जो भक्तों से स्नेह करने वाले हैं, जिनकी कमर पर मधुर ध्वनि करने वाली सुंदर स्वर्ण-करधनी शोभित है, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥४॥
Bhukti-mukti-dāyakaṃ praśasta-cāru-vigrahaṃ
Bhakta-vatsalaṃ sthitaṃ samasta-loka-vigraham |
Vinikvaṇan-manojña-hema-kiṅkiṇī-lasatkaṭiṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||4||
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥५॥
अर्थ: जो धर्म के सेतु की रक्षा करने वाले हैं और अधर्म के मार्ग का नाश करने वाले हैं, जो कर्म के बंधन से मुक्ति दिलाते हैं और जो परम सुख (मोक्ष) प्रदान करने वाले प्रभु हैं, जिनका शरीर सुनहरे रंग के शेषनाग से सुशोभित है, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥५॥
Dharmasetu-pālakaṃ tvadharma-mārga-nāśakaṃ
Karma-pāśa-mocakaṃ suśarma-dāyakaṃ vibhum |
Svarṇavarṇa-śeṣa-pāśa-śobhitāṅga-maṇḍalaṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||5||
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥६॥
अर्थ: जिनके चरण-युगल रत्नों से जड़ित पादुकाओं की कांति से सुशोभित हैं, जो नित्य, अद्वितीय, हमारे इष्टदेव और माया से रहित हैं, जो मृत्यु के अहंकार का नाश करने वाले हैं और अपनी भयंकर दाढ़ों से मोक्ष प्रदान करते हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥६॥
Ratna-pādukā-prabhābhi-rāma-pādayugmakaṃ
Nityam-advitīyam-iṣṭa-daivataṃ nirañjanam |
Mṛtyu-darpa-nāśanaṃ karāla-daṃṣṭra-mokṣaṇaṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||6||
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥७॥
अर्थ: जिनका अट्टहास ब्रह्मा जी द्वारा रचे गए ब्रह्मांडों को खंडित कर सकता है, जिनकी एक दृष्टि से ही पापों का समूह नष्ट हो जाता है, जो आठों सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं और कपालों की माला धारण करते हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥७॥
Aṭṭahāsa-bhinna-padmajāṇḍa-kośa-santatiṃ
Dṛṣṭipāta-naṣṭa-pāpa-jālam-ugra-śāsanam |
Aṣṭasiddhi-dāyakaṃ kapāla-mālikā-dharaṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||7||
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥८॥
अर्थ: जो भूत-प्रेतों के नायक हैं, जो विशाल कीर्ति प्रदान करने वाले हैं, जो काशी में निवास करने वालों के पुण्य और पाप का शोधन करने वाले प्रभु हैं, जो नीति मार्ग के ज्ञाता, सनातन और जगत के स्वामी हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव का मैं भजन करता हूँ॥८॥
Bhūtasaṅgha-nāyakaṃ viśāla-kīrti-dāyakaṃ
Kāśivāsa-loka-puṇya-pāpa-śodhakaṃ vibhum |
Nītimārga-kovidaṃ purātanaṃ jagatpatiṃ
Kāśikāpurādhinātha-kālabhairavaṃ bhaje ||8||
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥
अर्थ: जो भी इस मनोहर 'कालभैरवाष्टक' का पाठ करते हैं, वह ज्ञान और मुक्ति का साधन है, विचित्र पुण्यों को बढ़ाने वाला है और शोक, मोह, दीनता, लोभ, क्रोध तथा ताप का नाश करता है। वे निश्चित रूप से मृत्यु के पश्चात् भगवान कालभैरव के चरणों में स्थान प्राप्त करते हैं॥९॥
Kālabhairavāṣṭakaṃ paṭhanti ye manoharaṃ
Jñāna-mukti-sādhanaṃ vicitra-puṇya-vardhanam |
Śoka-moha-dainya-lobha-kopa-tāpa-nāśanaṃ
Te prayānti kālabhairavāṅghri-sannidhiṃ dhruvam ||9||
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥