शिवापराध क्षमापण स्तोत्र - संस्कृति अनुवाद | Shiv Aparaadh Kshamaapan Stotram - Sanskrit with Hindi

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शिवापराध क्षमापन स्तोत्रम्

रचयिता: आदि शंकराचार्य

स्तोत्र की विशेषताएँ

  • ➤  यह स्तोत्र भक्ति, समर्पण और विनम्रता का एक अनुपम उदाहरण है।
  • ➤  यह स्तोत्र अहंकार को त्यागकर ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का मार्ग दिखाता है।

रचना का उद्देश्य

  • ➤  आदि शंकराचार्य ने इस स्तोत्र की रचना मनुष्य को यह सिखाने के लिए की कि ज्ञान के शिखर पर पहुंचने के बाद भी एक भक्त के मन में विनम्रता और ईश्वर के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए।
  • ➤  इसका उद्देश्य आम मनुष्य को यह भी दिखाना था कि परम ज्ञानी होने के बाद भी भक्त के मन में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव होना चाहिए। जीवन में हुई गलतियों के लिए पश्चाताप और ईश्वर से क्षमा मांगना कितना महत्वपूर्ण है।

पाठ की सरल विधि

  • ➤  इस स्तोत्र का पाठ शाम के समय, विशेषकर सोमवार या प्रदोष को करना उत्तम होता है।
  • ➤  सच्चे हृदय से पाठ करने पर यह मन को शांति और अपराध बोध से मुक्ति दिलाता है।
  • ➤  शिवजी के सामने दीपक जलाकर, अत्यंत विनम्र भाव से अपनी गलतियों को मन में स्वीकार करते हुए इसका पाठ करें।
  • शिवापराध क्षमापन स्तोत्रम्
    आदि शंकराचार्य कृत
    आपातालनभःस्तलं हि परियांन्तं यावद्भूमण्डलं धात्रीपादतलं हि यावत् उदकं तस्मिन्नपि स्थीयते। एकैवेश्वर ईशतेऽवशमियं यस्य प्रभोः प्रेक्षणात् श्रीमच्छङ्करपादपद्मयुगलं ह्येतत्प्रणम्याऽहम्॥ १॥
    अर्थ - आकाश से पाताल तक जितना भी जगत है वह सब प्रभु की दृष्टि से स्थित है। ऐसे परमेश्वर शिव के चरणों को मैं प्रणाम करता हूँ।
    मन्दारमालालसतार्धकायं सुरासुराराधितपादपद्मम्। लसत्पिनाकं कमलासनं च नमामि देवं जगदीशमीडे॥ २॥
    अर्थ - जो मन्दारमालाधारी, अर्धनारीश्वर, देव-दानवों के पूज्य और पिनाकधारी हैं, उस जगदीश्वर शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
    न जानामि योगं जपं नैव पूजां न तोऽहम् ज्ञातस्त्वमेकं परात्मन्। यथा शक्तमेव ततोऽहं करिष्ये शिव प्रसीदं परमे शिवाय॥ ३॥
    अर्थ - हे परब्रह्म शिव! मैं न योग जानता हूँ, न जप, न पूजा। यथाशक्ति जो कर सकता हूँ वही करता हूँ। कृपा करें।
    त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥ ४॥
    अर्थ - हे देवदेव! आप ही मेरे माता-पिता, बन्धु-सखा, विद्या और धन हैं; आप ही मेरे सर्वस्व हैं।
    अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयं इति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर॥ ५॥
    अर्थ - हे प्रभो! मैं आपका दास हूँ, मुझसे दिन-रात सहस्रों अपराध होते हैं। मुझे क्षमा करें।
    अवज्ञया कथमपि प्रवृत्तो मया प्रभो! त्वत्परिरक्षणाय। इदानीमेव त्वयि संप्रवृत्तः कृपां कुरु त्वं परमे शिवाय॥ ६॥
    अर्थ - हे प्रभो! मैं अज्ञानवश अवज्ञा करता रहा, अब आपकी शरण आया हूँ, कृपा करें।
    अनादिनादं परमं महेशं परात्परं कारणकारणानाम्। नमामि नित्यं नमितार्तिहन्तारं हरं शिवं शङ्करमीशमीडे॥ ७॥
    अर्थ - जो अनादि, अनन्त, कारणों के भी कारण, दीनों के दुःखहर हैं, उस शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
    भवद्भावो भवमेकोऽभिलष्यो भवाम्भोधौ भवभीतस्य नाथ। त्वमेव शरण्यं ममेशान भवेद्भावो भवमुक्त्यै मम त्वम्॥ ८॥
    अर्थ - हे प्रभो! संसार-सागर से भयभीत जन के लिए आप ही एकमात्र शरण हैं, आप ही मोक्षदाता हैं।
    करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्। विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥ ९॥
    अर्थ - हे शम्भो! हाथ, पैर, वाणी, मन, कान, आँख, या कर्म से हुए सभी अपराधों को क्षमा करें, हे करुणासागर महादेव!
    न जानामि भजामि त्वां न वेदास्ति ममेश्वर। तथापि त्वत्पदं नाहं विस्मरामि कदाचन॥ १०॥
    अर्थ - हे ईश्वर! मैं पूजा का विधि नहीं जानता, फिर भी आपके चरणों को कभी नहीं भूलता।
    अवगच्छामि देवेश यत्तद्भवति मे हितम्। तत्कुरुष्व महेशान त्वत्पादाभ्यर्चनं सदा॥ ११॥
    अर्थ - हे देवेश! जो भी मेरे लिए कल्याणकारी है, वही करें, मैं सदा आपके चरणों की पूजा करूँ।
    न दोषं पश्चात्तापं च कुरुते मत्तदोषतः। त्वं मम दोषं जानासि क्षमस्व परमेश्वर॥ १२॥
    अर्थ - हे प्रभो! मेरे दोष आप जानते हैं, मैं पश्चाताप करता हूँ, कृपा करके क्षमा करें।
    भक्तिहीनस्य देवेऽपि त्वमेव प्रतिपालकः। तेन त्वं कृपया नाथ मां रक्ष सर्वदा प्रभो॥ १३॥
    अर्थ - हे प्रभो! मैं भक्तिहीन हूँ, फिर भी आप सबका पालन करने वाले हैं, कृपा करके मेरी रक्षा करें।
    यद्यदपि मया कार्यं तत्सर्वं ते निक्षिप्यते। त्वमेव मे हि सर्वस्वं त्वं मे नाथोऽसि शंकर॥ १४॥
    अर्थ - जो भी मैं करता हूँ वह सब आपमें समर्पित है। आप ही मेरे सर्वस्व और स्वामी हैं।
    विचारमणिना देवं यः पश्यति महेश्वरम्। स एव मुक्तो भवति नान्यः पन्था सनातनः॥ १५॥
    अर्थ - जो विचारपूर्वक महेश्वर को देखता है वही मुक्त होता है, मोक्ष का अन्य कोई मार्ग नहीं।
    संसारसागरात् घोरात् पातयन्ति मम अपराधाः। त्वमेव तारयस्व मां कृपया परमेश्वर॥ १६॥
    अर्थ - मेरे अपराध मुझे संसार-सागर में गिराते हैं, हे प्रभो! कृपा करके मुझे पार लगाओ।
    मया कृतं पापं सर्वं क्षमस्व परमेश्वर। त्वमेव शरणं मेऽसि त्वं मे नाथोऽसि शंकर॥ १७॥
    अर्थ - हे प्रभो! मुझसे जो भी पाप हुआ है, उसे क्षमा करें। आप ही मेरी शरण और नाथ हैं।
    यत्र यत्र च मे देहि दृष्टिः पतति ते विभो। तत्सर्वं पूज्यते देव तव नाम्नि शिवं विना॥ १८॥
    अर्थ - हे प्रभु! मेरी दृष्टि जहाँ भी जाए, सबकुछ आपको ही पूज्य मानता हूँ, शिव के बिना कुछ नहीं।
    मृत्युंजयं मङ्गलदं करुणानिधानं गोत्रेषु शंकरं शंभुमीशानमीडे। देवानां चेश्वरं विश्वनंथा नमामि त्रैलोक्यनाथं परमं शिवं तं॥ १९॥
    अर्थ - मैं मृत्युंजय, करुणामय, विश्वनाथ, त्रिलोचन शिव को प्रणाम करता हूँ जो सभी का मंगल करते हैं।
    मम अपराधान् क्षमस्व देवदेवेश्वर। नमस्ते शंकर प्रभो नमोऽस्तु ते पुनः पुनः॥ २०॥
    अर्थ - हे देवदेवेश्वर! मेरे अपराध क्षमा करें। प्रभु शंकर! आपको बार-बार नमस्कार।
    त्वद्भक्तिर्मे हृदि सदा वसतु देवदेव। संसारदुःखभयभीतजनान् त्रायस्व माम्॥ २१॥
    अर्थ - हे देवदेव! मेरे हृदय में सदा आपकी भक्ति वास करे और मुझे संसार-दुःख से मुक्त करें।
    भवतु मे परमानन्दो भवद्भक्तेर्निर्मलः। त्वत्प्रसादाच्छिवोऽहं स्यां मुक्तो भवसागरात्॥ २२॥
    अर्थ - आपकी निर्मल भक्ति से मेरा परम आनंद हो और आपके प्रसाद से मैं मोक्ष प्राप्त करूँ।
    प्रसीद मम नाथेश शरणं त्वां प्रपन्नवान्। अपराधान् क्षमस्व त्वं शिवं मे कुरु नित्यशः॥ २३॥
    अर्थ - हे नाथ! मैं आपकी शरण में आया हूँ। मेरे अपराधों को क्षमा करें और मुझे सदा शिवमय बनाएं।
    कृतं मया तव पूजां यद्यल्पं तु तत्प्रभो। तत्सर्वं स्वीकुरुष्व त्वं कृपया परमेश्वर॥ २४॥
    अर्थ - हे परमेश्वर! यदि मेरी पूजा अल्प है, तो भी कृपया उसे स्वीकार करें।
    इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु श्रद्धया परमेश्वर। स गच्छति परां सिद्धिं शिवेन सह मोदते॥ २५॥
    अर्थ - जो व्यक्ति श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह परम सिद्धि पाता है और शिव के साथ आनंद प्राप्त करता है।
    इति श्रीशङ्कराचार्यकृतं शिवापराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

About the author

D Shwari
I'm a professor at National University's Department of Computer Science. My main streams are data science and data analysis. Project management for many computer science-related sectors. Next working project on Al with deep Learning.....

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