ॐ नमः शिवाय
॥ श्री लिंगाष्टकम् स्तोत्रम् ॥
रचियता: आदि शंकराचार्य कृत
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं निर्मलभासित शोभित लिङ्गम्।
जनमज दुःख विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ १ ॥
जनमज दुःख विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ १ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ, जिसकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु और देवगण करते हैं, जो निर्मल, उज्ज्वल और शोभायुक्त है, और जो जन्म-मृत्यु रूपी दुःखों का नाश करता है।
देवमुनिप्रवरार्चित लिङ्गं कामदहं करुणाकर लिङ्गम्।
रावणदर्शन कारक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ २ ॥
रावणदर्शन कारक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ २ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिसकी पूजा श्रेष्ठ देवता और मुनि करते हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, करुणा के सागर हैं, और जिसका दर्शन रावण ने किया था।
सर्वसुगन्ध सुलेपित लिङ्गं बुद्धिविवर्धन कारण लिङ्गम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ३ ॥
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ३ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जो सुगंधित चंदनादि से सुशोभित है, जो बुद्धि को बढ़ाने वाला है, और जिसकी आराधना सिद्ध, देव और असुर सब करते हैं।
कनकमहामणिभूषित लिङ्गं फणिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञ विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ४ ॥
दक्षसुयज्ञ विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ४ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जो स्वर्ण और मणियों से सुशोभित है, जिसके चारों ओर नागराज शोभा बढ़ा रहे हैं, और जिसने दक्ष के यज्ञ का विनाश किया।
कुमारगुरु ब्रह्मविवर्धित लिङ्गं कामदहं करुणाकर लिङ्गम्।
रावणदर्शन कारक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ५ ॥
रावणदर्शन कारक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ५ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ, जिसकी पूजा कुमार (कार्तिकेय), गुरु (बृहस्पति) और ब्रह्मा करते हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले और दयालु हैं।
सर्वलोक कृतवासं लिङ्गं त्रिलोचनं रावण कारक लिङ्गम्।
सर्वदुःख विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ६ ॥
सर्वदुःख विनाशक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ६ ॥
अर्थ - मैं उस त्रिनेत्रधारी सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ, जो समस्त लोकों में व्याप्त हैं, जिनका दर्शन रावण ने किया था, और जो सभी दुखों का नाश करते हैं।
देवगणैः सुपूजित लिङ्गं भक्तिवरेण सदाशिव लिङ्गम्।
दीनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ७ ॥
दीनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ७ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ, जिसकी देवगण पूजा करते हैं, जो भक्तों को वर देने वाले हैं, और जिनका तेज करोड़ सूर्यों के समान है।
अष्टदलोपरी वेष्टित लिङ्गं सर्वसमृद्धि प्रदायक लिङ्गम्।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ८ ॥
परात्परं परमात्मक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ८ ॥
अर्थ - मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जो अष्टदल कमल के ऊपर स्थित है, जो सभी प्रकार की संपन्नता प्रदान करते हैं, और जो स्वयं परमात्मा हैं।